क्यों जाना पड़ा धरती माँ को ब्रह्माजी की शरण में!
राम राम, मै शिवप्रिया।
एक बार राजा परीक्षित ने सुकदेव जी से पूछा- ” हे भगवन ! असुरो को मुक्ति देने वाले और भक्तो को प्रेम वितरण करने वाले भगवान् कृष्ण अपने वात्सल्य स्नेह से भरे हुए पिता का घर छोड़ कर व्रज में क्यों चले गए? व्रज में रहकर प्रभु ने कौन कौनसी लीलाएं की? उन्होंने अपने मामा कंस का वध क्यों करा?
मुनि ! मैंने आपसे श्री कृष्णा की जितनी लीलाये पूछी है, और जो नहीं पूछी है, वे सब आप मुझे विस्तार से बताये ; क्योकि आप सब कुछ जानते है और मैं बड़ी श्रद्धा के साथ सुन्ना चाहता हूँ। भगवन ! अन्न की बात ही क्या, मैंने जल का भी त्याग कर दिया है फिर भी वह असह्य भूक प्यास मुझे तनिक भी नहीं सत्ता रही है ; क्योकि मैं आपके मुख कमल से झड़ती हुई भगवान् की सुधामई लीला-कथा का पान कर रहा हूँ।”
श्री सुकदेव जी ने कहा – ” राजन तुमने जो प्रश्न पूछे हैं उनके उत्तर बहुत सुन्दर हैं। भगवान् कृष्णा की लीलाएं बहुत अद्भुत और आनंद देने वाली है, भगवान् कृष्ण की कथाओ के सम्बंध में प्रश्न करने वाले की, उत्तर देने वाले की और सुनने वाले की ऊर्जाएं उसी प्रकार पवित्र हो जाती हैं जिस प्रकार गंगा जल से पवित्र हो जाती हैं, श्री कृष्णा की लीलाओं की कथाये सुनने से मनुष्य का कल्याण हो जाता है।
परीक्षित ! उस समय लाखो राक्षसों ने और दैत्यों ने अपने बल और घमंड के नशे में पृथ्वी पर आतंक फैला रखा था, पूरी पृथ्वी पर त्राहि त्राहि हो रखी थी, इस आतंक से परेशान होकर पृथ्वी ब्रह्मा जी की शरण में गयी। पृथ्वी ने उस समय गौ का रूप धारण कर रखा था । पृथ्वी के नेत्रों से अश्रु धारा बह रही थी, उनका मन तो हताश था ही, शरीर भी कृश हो गया था । बहुत करुण स्वर में उन्होंने ब्रह्मा जी से अपने पूरे दुःख का वर्णन किया । ब्रह्मा जी ने पूरी बात बड़ी सहानुभूति के साथ सुनी। उसके पश्चात भगवान् शंकर, ब्रम्हाजी एवं स्वर्ग के सभी न्याय प्रमुख देवता, गौ रुपी पृथ्वी के साथ क्षीरसागर तट पर गए। भगवान् विष्णु देवताओं के भी आराध्य हैं। क्षीरसागर तट पर पहुंच कर सभी देवताओं ने ‘ पुरुषसूक्त ‘ के द्वारा भगवान् विष्णु की स्तुति की। स्तुति करते करते ब्रम्हा जी समाधिस्थ हो गए। उन्होंने समाधी अवस्था में आकाशवाणी सुनी।
इसके बाद ब्रम्हा जी ने देवताओं से कहा – ‘ देवताओं ! मैंने भगवान् की वाणी सुनी है। आप लोग भी उसे मेरे द्वारा सुन लीजिये और उसका पालन करे। भगवान को पृथ्वी के कष्ट का पहले से ही ज्ञात है। अपनी कालशक्ति के द्वारा पृथ्वी का भार हरण करते हुए वे जब तक पृथ्वी पर लीला करे, तब तक आप लोग भी अपने अपने अंशो के साथ यदुकुल में जन्म लेकर उनकी लीलाओं में सहयोग दे। वासुदेव जी के घर स्वयं पुरुषोत्तम भगवान् प्रकट होंगे ।उनकी और उनकी प्रियतमा ( श्री राधा )- की सेवा के लिए देवांगनाएँ जन्म ग्रहण करे । भगवान् शेषनाग भी, भगवान् के प्रिय कार्य करने के लिए उनके बड़े भाई(बलराम) के रूप में जन्म लेंगे।
भगवान की ऐश्वर्यशालिनी योगमाया भी, उनकी आज्ञा से उनकी लीला के कार्य संपन्न करने के लिए अंश रूप में अवतार ग्रहण करेगी।’
भगवान ब्रम्हा जी ने देवताओं को इस प्रकार आज्ञा दी और पृथ्वी को सब ठीक हो जाने का आश्वासन दिलाया, इसके बाद वह अपने परमधाम को चले गए। “
क्रमशः!