सुनसान के साधक…7

sunsan ke sadhak7
सुनसान के साधक…7
चमत्कारिक मटके वाले सिद्ध साधक

सभी अपनों को राम राम
हिमालय की शिवालिक पर्वत माला के मणिकूट पहाड़ों पर मेरी साधना का 26 वां दिन।
एक सिद्ध साधक से भेंट हुई।
उन्होंने मटका सिद्ध कर रखा था।
उसमें से निकालकर लोगों को फल बांट रहे थे।
अनगिनत लोगों को बांटने के बाद भी उनके छोटे से मटके के फल खत्म नही हो रहे थे।
उस दिन मै भगवान नीलकंठ को जाने वाले रास्ते पर चढ़ रहा था। रात में पानी बरसा अब कड़ी धूप थी। रास्ते में फिसलन थी। उन दिनों उस रास्ते से कांवड़ियों का बहुत आना जाना था। वे जल चढ़ाने हेतु बाबा नीलकंठ धाम आ जा रहे थे।
मौनी बाबा गुफा से तकरीबन 2 किलोमीटर ऊपर जाने पर एक जगह वे मिले। रास्ते से हटकर पेड़ की छांव में एक पत्थर पर बैठे थे। हाथ मे 2 केले थे। इशारे से पास बुलाया और केले मुझे पकड़ा दिए।
उनके हाथ में मिट्टी का एक मटका था।
उसका आकार इतना था कि हाथ में पकड़कर आसानी से चला जा सके। मुझे केले देने के बाद उन्होंने मटके में हाथ डाला। उसमें से दो आम निकाले। मेरे पीछे आ रहे एक कावड़िये भक्त को इशारे से बुलाया। उसे आम दे दिए। फिर मटके में हाथ डाला। उसमें से दो सेव निकाले। एक और कावड़िये को बुलाकर दे दिया। इस तरह मटके से फल निकालकर बांटते रहे।
फल देने के बाद वे लोगों से आगे जाने का इशारा करते थे। किसी को वहां रुकने नही देते। मुझे जाने का इशारा नही किया। मै रुका रहा। मेरे देखते देखते उन्होंने 20-25 लोगों को फल बांट दिए। इतने फल तो मटके में आ ही नही सकते थे।
उनका मटका चमत्कारिक था।
वे मौन थे।
इकहरा बदन। कमर पर सफेद कपड़े की लंगोटी। और कोई वस्त्र नहीं। आकर्षक व्यक्तित्व।
देखने में उम्र 25 से 30 साल। उनकी सिद्धियों को देखकर मुझे लगा उनकी उम्र दिखती कुछ और है, वास्तव में है कुछ और।
लोगों को फल ऐसे दे रहे थे कि किसी का शरीर उनसे छूने न पाए।
मुझे उन्होंने जो फल दिए थे वे मैने एक शिव भक्त कांवड़िए को दे दिए।
यह उन्होंने देख लिया।
अपने मटके में हाथ डाला। इस बार चौकाने वाली चीज निकाली। एक मुट्ठी अंगूर थे। मुझे दे दिए और खुद ही खाने का इशारा किया। मैने पीठ पर लटका पिट्ठू बैग खोला। उसमें अंगूर रख लिए।
इस मौसम में अंगूर? वह भी यहां।
बड़े आश्चर्य की बात थी।
मै समझ गया कि उनका मटका सिद्ध है। उसमें हर तरह के और अनगिनत फल देने की क्षमता है। तभी कांवड़ियों का एक बड़ा जत्था बम भोले के नारे लगाता हुआ उधर से गुजरा। वे उठकर रास्ते से थोड़ा और दूर हो गए।
दरअसल वे पूरी कोशिश कर रहे थे कि उनका शरीर किसी से छूने न पाए।
इस बीच वे जान गए थे कि मुझे उनके मटके के सिद्ध होने का पता चल गया है। उन्होंने इशारा किया कि मै इस बारे में किसी को न बताऊं।
मैने न बताने की हांमी भर दी।
कांवड़ियों की भीड़ में कोई उन्हें छू न ले इसलिये
फल बांटने के लिये उन्होंने मुझे माध्यम बनाया।
वे मटके में से फल निकालकर मुझे देते, मै शिव भक्त कांवड़ियों को दे देता।
साथ ही वे कांवड़ियों को बार बार हाथ जोड़कर प्रणाम भी करते जा रहे थे। यह शिव भक्तों के प्रति उनका सम्मान था।
हम काफी देर फल बांटते रहे।
फिर अचानक वे उठे और तेजी से पहाड़ी की दूसरी तरफ चले गए। उससे पहले मुझसे इशारों में कुछ बातें कीं। इशारे में उन्होंने बताया कि वे अक्सर इस रास्ते पर आते हैं।
किंतु उस दिन के बाद हम कभी नही मिले।
आगे मै बताऊंगा कि हांथियो के झुंड ने हमला करके हमारी कुटी तहस नहस कर दी। वहां मौजूद साधक मुश्किल से जान बचा पाए।
कुटी टूटने पर मै बहुत खुश हुआ।
शिव शरणं!

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