सुनसान के साधक…4

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सुनसान के साधक…4

खतरनाक साधक से मुलाकात
सभी अपनों को राम राम
हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रृंखला।
इस बार की हिमालय साधना के लिये मैने इसी क्षेत्र को चुना। सावन में यहां मणिकूट पर्वत पर साधना कर रहा हूँ।
17 वां दिन।
भूतनाथ भगवान का शिवार्चन करने के बाद 4 घण्टे की खड़ी साधना आरम्भ हुई। जिसके तहत 4 घण्टे तक खड़े रहकर मन्त्र जप करना रहता था। एक जगह खड़े रहने की बजाय रोज की तरह पहाड़ी जंगलों की तरफ चला गया।
लगभग 2 घण्टे पहाड़ चढ़ता रहा।
3 से 4 किलोमीटर पहाड़ी जंगलों के बीच जा चुका था। पहाड़ों की चढ़ाई पर गति काफी कम हो जाती है।
दूर दूर तक कोई न था।
यदा कदा जंगली जानवर, सांप आदि दिख जाते। उस दिन हिरण और मोर कई जगह दिखे। ऊपर एक जगह भालू भी दिखा। वह मेरे रास्ते से अलग था। सो कोई खतरा न था।
अचानक किसी ने दाहिनी तरफ से आवाज दी।
मै मन्त्र में खोया था, सो सुनकर भी अनसुना करते हुए आगे बढ़ता गया।
दोबारा आवाज दी गयी। साथ ही धमकी भी।
धमकी थी प्राणों की। धमकी का मतलब था कि कई बार बुलाया गया मगर उधर ध्यान न दे पाया। दरअसल मै मन्त्र में खोया था।
मैने एक नजर उधर देखा और फिर आगे चल पड़ा।
सोचा जो अकारण प्राणों की धमकी दे रहा है उससे मिलकर समय क्यों बर्बाद करूँ।
मन की गहराई तक मन्त्र की तरंग में था। इसलिये आवाज देने वाले से मुखातिब होने का मन न हुआ।
चलता रहा।
अचानक अदृश्य हमला हो गया।
पूरा शरीर तीब्र तरंगों से झकझोर दिया गया।
रक्त का प्रवाह असंतुलित होता प्रतीत हुआ। दिल की गति विचलित हो गयी। नसों में तेज झनझनाहट होने लगी। उनके भीतर चीटियाँ सी दौड़ती महसूस हुईं। तेज चक्कर आया। गिरते बचा। हाथ में बेंत के डंडे का सहारा न होता तो गिर ही गया होता। सांसों में भारीपन बढ़ गया। जैसे वे रुक जाना चाहती हों।
मैने सुबह ही अपना सुरक्षा कवच बनाया था।
उसे तोड़ दिया गया था।
न जान पहचान, न कोई शत्रुता।
फिर भी प्राणों पर हमला?
वही स्थिति कुछ देर और बनी रहती तो मरणासन्न हो जाता। तीखी उर्जा तरंगों ने हृदय और रक्त संचार प्रणाली को गहराई तक प्रभावित किया था।
किसी योग्य डॉ से पूछा जाता तो वह हाई ब्लड प्रेशर या हर्ट अटैक के लक्षण बताता।
परंतु यहां बात कुछ और थी।
थोड़ा गुस्सा आया।
पलटवार का विचार उत्पन्न हुआ।
किंतु पहले खुद को सुरक्षित करना जरूरी लगा।
इसके लिये प्रत्यंगिरा की ऊर्जाओं का सहारा लेना पड़ा। क्योंकि सामान्य सुरक्षा कवच तो आसानी से तोड़ा जा चुका था।
मन्त्र जप का आनंद खत्म हो चुका था।
एकाग्रता टूट चुकी थी।
सो अज्ञात शत्रु से मिलने के लिये पलटकर उसकी तरफ चल पड़ा। कमजोरी अभी भी बहुत महसूस हो रही थी।
उनके और मेरे बीच में गहरी खाई थी। काफी घूमकर वहां जाना पड़ा।
उनकी उम्र 70 से अधिक होगी।
शरीर में तेजी अभी भी गजब की थी।
युवा अवस्था में व्यक्तित्व बहुत आकर्षक रहा होगा।
टाट की एक लगोटी पहन रखी थी।
और कुछ भी नही।
उनके पास कोई सामान न था, न कोई झोला या बैग। शायद आसपास जंगल में ही किसी गुफा रहते होंगे। वरना ऐसे निर्जन जगहों पर साधु साधक अपने साथ जरूरत की कुछ चीजें लेकर ही चलते हैं।
वे तेजस्वी साधक थे।
मगर अपना हाल बिगाड़ रखा था। ऐसा दिख रहा था जैसे उनका अपने शरीर से कोई मतलब ही नही।
शरीर पर जगह जगह मिट्टी कीचड़।
उलझे दादी बाल।
टाट की एकलौती लंगोटी भी फटी हुई।
लगभग नंगे ही थे।
शरीर के प्रति फक्कडों और पागलों से भी ज्यादा बेपरवाही नजर आ रही थी।
पहली नजर में वे पागल ही दिखते थे।
वे सिद्ध तांत्रिक थे।
पत्थर की जिस शिला पर बैठे थे, इत्तिफाक से वह भी तांत्रिक बनावट वाली थी।
त्रिकोण आकार में।
सोचा पास जाकर पूछुंगा आप अकारण लोगों की जान के दुश्मन क्यों बने हो। मगर मेरे पूछने से पहले खुद ही मन में चल रहे सवाल का जवाब देने लगे।
उनका जवाब विचित्र था और उनकी सिद्धियां हैरान करने वाली।
मेरा नाम उन्हें पता था। मेरे मन में क्या है यह उनको पता था। पीठ पर लटके थैले में क्या है, यह उनको पता था। मेरे जीवन की योजना क्या है, यह उनको पता था।
आगे उनके अचंभित करने वाले व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे।
क्रमशः
शिव शरणं!

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