साधना दिनचर्या…
*बेलपत्र खाकर खड़ी तपस्या*
सभी अपनों को राम राम
कुछ साधकों ने कई बार जिज्ञासा जताई है कि मै
उन्हें हिमालय साधना के बारे में बताऊं।
साधना की दिनचर्या के बारे में बताऊं।
ताकि भविष्य में जो साधक हिमालय साधना करना चाहें वे प्रेरणा ले सकें।
आज मै इस बार की अपनी साधना की दिनचर्या बता रहा हूँ। हो सकता है साधक वास्तव में प्रेरणा ले सकें।
इस बार की साधना देर रात तक की है।
इसलिये सुबह थोड़ा देर से उठता हूं।
सुबह 5 बजे उठकर नियमित ध्यान।
तुलसी पत्ती के साथ 1 गिलास गर्म पानी।
7 बजे शिवार्चन के लिये प्रस्थान।
अबकी मैने एक विशेष उद्देश्य के लिये मणिकूट पर्वत के विभिन्न सिद्ध शिवलिंग को शिवार्चन के लिये चुना।
मणिकूट पर्वत के अधिकांश हिस्से एक तरफ पहाड़ी जंगल और दूसरी तरफ गंगा जी से घिरे हैं। बड़ा ही मनोरम क्षेत्र है यह।
वहां के कुछ सिद्ध शिवलिंग पर शिव सहस्त्र नाम के जाप के साथ दुग्ध धारा से शिवार्चन कर रहा हूँ। सावन भर चलेगा।
8 से साढ़े 8 के बीच शिवार्चन सम्पन्न।
उसके बाद उसी शिवलिंग पर चढ़े बेलपत्र का नाश्ता।
प्रायः 5-7 बेलपत्र मिल ही जाते हैं। सिर्फ एक दिन ही ऐसा हुआ जब 2 बेलपत्र ही मिले।
उस दिन रास्ते में मिले अमरूद के पेड़ से तोड़कर उसके भी दो पत्ते खा लिए।
तब जाकर संतुष्टि हुई।
फिर खुद पर हंसी आई। अगर अमरूद के पत्ते न भी खाता तो भी काम चल ही जाता।
मगर सिर्फ 2 बेलपत्र मिलने के बाद से मन में आंदोलन सा चल रहा था।
ऐसे जैसे शिवगुरु ने आज मेरे राशन में जानबूझ कर कटौती कर दी हो।
आंदोलनकारी मन ने अमरूद के पत्ते खाने के लिये उकसाया।
ऐसे ही मन जीवन में कई बार गैर जरूरी चीजों के लिये उकसाता है। उस वक्त मैने खुद को ठीक उसी तरह का नादान पाया जैसे एक जिद्दी बच्चा अपने पिता को नीचा दिखाने के लिये उसी के सामने सिगरेट सुलगा लेता है।
खुद पर अफसोस हुआ।
शिवगुरु से मांफी नही मांगी, बल्कि वादा किया कि आगे से संकल्प नही तोडूंगा।
उस दिन के बाद खाने के लिये कभी बेलपत्र कम नही पड़े। मुझे इस बात पर अचरज हुआ। क्योंकि उस जगह आने वाले लोग प्रायः अपने साथ बेलपत्र नही लाते। इसलिये वहां ज्यादा बेलपत्र नही चढ़ते।
मन्दिर के पुजारी से एक दिन पूछा। पंडित जी आजकल सुबह सुबह यहां इतने बेलपत्र कहां से आ जाते हैं। पुजारी ने बताया कि आजकल आप से पहले एक बूढ़े बाबा कहीं से आते हैं। वे मन्दिर के बाहर से ही बेलपत्र देकर चले जाते हैं। कह रहे थे सावन भर आएंगे।
शिवार्चन के बाद मै 4 घण्टे की खड़ी साधना कर रहा हूँ। खड़ी साधना के दौरान खड़े रहना होता है। कुछ साधक पानी में खड़े रहकर यह साधना करते हैं। कुछ तो एक पैर पर खड़े रहते हैं। कुछ अपने संकल्प के मुताबिक पहाड़ों या अन्य स्थलों पर खड़े रहकर साधना पूरी करते हैं।
खड़ी साधना का बड़ा विज्ञान है।
इससे साधक के सभी अंग और शक्ति केंद्र एक लय में आ जाते हैं। शक्ति और रक्त का संचार एकरूपता ले लेता है। कुण्डलिनी और ऊर्जा केंद्र सक्रियता प्राप्त करते हैं।
एकाग्रता बढ़ती है। ब्रम्हांडीय शक्तियों और साधक की शक्तियों के बीच तालमेल बढ़ता है।
साधक इसे खड़ी तपस्या के नाम से संबोधित करते हैं।
मैने अपनी खड़ी तपस्या में अपना एक शौक भी जोड़ लिया है। पहाड़ों में घूमने का शौक।
4 घण्टे खड़े होकर मन्त्र जप की बजाय मै पहाड़ों की तरफ चला जाता हूँ। दोपहर एक बजे तक मेरी खड़ी तपस्या पूरी हो जाती है।
खड़ी साधना के बाद कुटिया पर वापस आ जाता हूँ। फलाहार करके सो जाता हूँ। क्योंकि देर रात तक साधना चलती है। बीच में एक भक्त मेरे लिये दाल का पानी बनाकर लाते थे। कुछ दिन फलाहार की जगह वही पीता रहा।
शाम को 3 घण्टे की फिर खड़ी साधना।
उसके लिये गंगा जी की तरफ निकल जाता हूँ। वहां गंगा मइया और हिमालय क्षेत्र के सभी देवी देवताओं, ऋषियों-मुनियों, आध्यात्मिक गुरुओं को सूक्ष्म रूप से बुलाकर उन्हें शिव सहस्त्र नाम सुनाता हूँ।
कहने की आवश्यकता नही कि शिव सहस्त्र नाम सुनने के लिये आमंत्रण पर देव शक्तियां दौड़ी चली आती हैं।
रात 8 से 9 के बीच वापसी।
दूध और फल का आहार।
रात 2 बजे तक साधना।
सावन में मौन साधना।
*बस! इस बार की हिमालय साधना में इतनी ही दिनचर्या है।*
सभी साधकों को बताता चलूं कि बेलपत्र खाकर साधना करने या खड़ी साधना करने की सबको अनिवार्यता नही होती। कुछ हठ, कुछ प्रायश्चित आदि के लिये इसे अपनाया जाता है।
मां पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिये कई बरस बेलपत्र खाकर तपस्या की थी। उनके जैसा कोई नही।
भविष्य में यदि कभी कोई साधक ऐसी साधना की तरफ़ प्रेरित हों तो कृपया अपने डॉ की पूर्ण सहमति प्राप्त कर लें।
डॉ की सलाह के बिना यह हठ योग होगा।
मै इसकी सलाह बिल्कुल नही देता।
शिव शरणं।