
14 जुलाई 2019….
मृत संजीवनी मुद्रा साधनाः मानव में देव जगाने में सक्षम
सभी अपनों को राम राम
14 जुलाई 19 को मुम्बई आश्रम में मृत संजीवनी मुद्रा साधना हो रही है.
इस बीच मृत संजीवनी विज्ञान को लेकर कुछ सवाल आये हैं. उनमें एक है कि क्या किसी साधना से मानव के भीतर देव उत्पन्न हो सकते हैं. हां तो कैसे,
उचित सवाल है.
जवाब जानने से पहले जान लें कि मानव में देव जागना यानी देव-मानव क्या है.
जो तन से, मन से, धन से मानव कल्याण में सक्षम होते हैं. अपने साथ दूसरों को भी खुश रखने में तत्पर रहते हैं. अपनी इस क्षमता का निरंतर उपयोग करते हैं. उनके कर्म देव समान माने जाते है. उन्हें देव मानव कहा जाता है.
जिनका अनाहत चक्र जाग्रत होता है. मूलाधार चक्र जाग्रत होता है. आज्ञा चक्र जाग्रत होता है. मणिपुर चक्र संतुलित होता है. वे तन, मन, धन से सक्षम और सुखी होते हैं. अनाहत चक्र की विशालता उनके हृदय में दया करुण, प्रेम, मानव सेवा के भाव प्रभावी करती है. इससे उनकी सोच देवों की तरह होती है. आज्ञा चक्र और मूलाधार चक्र की सक्रियता के कारण वे मानव सेवा में बढ़ चढ़कर भूमिका अदा करते हैं.
इसलिये वे देव-मानव कहे जाते हैं.
देव-मानवों में अध्यात्मिक शक्तियां स्वतः बढ़ती रहती हैं.
सही कहा जाये तो वे देवों के प्रिय होते हैं. शरीर छुटने के बाद देवता उन्हें अपने देवदूत के रूप में अपनाते हैं.
मृत संजीवनी मुद्रा साधना में मृत संजीवनी मुद्रा का उपयोग किया जा रहा है. जो सूक्ष्म शरीर की उर्जा नाड़ियों में उर्जा के प्रवाह को सर्वोत्तम करने में सक्षम है. इसी तरह यह मुद्रा स्थुल शरीर की रक्त नाड़ियों में रक्त के प्रवाह को सर्वोत्तम करने में सक्षम है. इससे हृदय सहित शरीर के रक्त प्रधानता वाले सभी अंग पुनर्जीवित होते हैं.
सूक्ष्म शरीर और स्थुल शरीर पर तेज गति से कार्य करके यह मुद्रा मरे हुए मन और मरते हुए शरीरों में प्राण शक्ति का संचार कर देती है. उनमें प्राण भर देती है.
इसी कारण योगी से मृत संजीवनी मुद्रा कहते हैं.
मृत संजीवनी मुद्रा का संजीवनी मंत्र और धनदा मंत्र के साथ संयोग करा दिया जाये तो मूलाधार चक्र, अनाहत चक्र, आज्ञा चक्र, मणिपुर चक्र और कुंडलिनी को जबरदस्त सक्रियता मिलती है. यह सक्रियता तन,मन,धन के सुख उत्पन्न करने और सौभाग्य जगाने में कारगर होती है. इससे साधक भौतिक जीवन के सुख भोगते हुए मोक्ष की मंजिल भी सरलता से पा लेता है.
अनाहत चक्र की सक्रियता के साथ कुंडलिनी की सक्रियता से साधक के भीतर देव-मानव के गुण व्याप्त होते जाते हैं.
इस तरह यह साधना देव-मानव का निर्माण करने में सक्षम हैं.
यानी मानव के भीतर देव जगाने में सक्षम है.
सबका जीवन सुखी हो, यही हमारी कामना है