धरती के भीतर रहकर युगों तक जीने वाले संत
सभी अपनों को राम राम
*कुवें की खोदाई के समय तकरीबन 60 फीट नीचे एक साधु निकले. जमीन के भीतर से जिंदा इंशान निकला देख गांव वाले घबरा गये. साधु ने पानी मंगवाया. उसे देखकर कहा यह तो कलयुग है. मुझे दोबारा मिट्टी में दबा दो. कुवां मिट्टी से पाट दिया गया.*
इस घटना की जानकारी मुझे एक साधु ने दी. उन दिनों मै हिमालय साधना में था. गुप्त काशी में एक संत मिले. देवी के साधक थे. उन्हें देवी सिद्धी थी. कुछ अन्य सिद्धियां भी थीं उनके पास.
साधना के दौरान हम कई दिन साथ रहे.
उसी बीच उन्होंने उपरोक्त वृतांत सुनाया. उनका कहना था कि यह घटना उनके ननिहाल में घटी. बचपन में वे वही रहते थे. एक दिन गांव में खबर फैली कि जमीन के भीतर से साधु निकला है. सारा गांव इकट्ठा हो गया.
गांव से बाहर एक खेत में ट्यूबवेल लगाने के लिये कुवां खोदा जा रहा था. उस गांव में पानी जमीन के बहुत नीचे था. आमतौर से वहां 70-80 फीट नीचे पानी मिलता था. जहां पानी बहुत गहराई में होता है वहां ट्यूबवेल के लिये कुवां खोदना पड़ता है. जमीन से पानी खींचकर ऊपर तक पहुंचाने वाला यंत्र कुवें के भीतर लगाया जाता है. जो मोटर या इंजन के द्वारा पट्टों के सहारे काम करता है.
60 फीट गहराई तक कुवां खोदा जा चुका था. दो मजदूर कुवें के भीतर थे. एक मिट्टी खोद रहा था. दूसरा मिट्टी भरी डलिया रस्सी से बांध रहा था. बाहर लगे मजदूर रस्सी खींच कर डलिया ऊपर ले लेते थे. इस तरह कुवां खोदा जा रहा था.
अचानक कुवें के भीतर काम कर रहे मजदूरों को जमीन के भीतर किसी व्यक्ति के दबे होने के संकेत मिले. खोदाई में सफेद बाल दिखे. फिर सिर और कंधा नजर आया.
मजदूरों ने शोर मचाकर ऊपर काम कर रहे लोगों को इसकी जानकारी दी. फिर सावधानी पूर्वक खोदाई की गई.
मिट्टी में दबे एक साधु निकले.
इधर उधर फैली हुई लम्बी जटायें मिट्टी से सनी थीं. शरीर के कपड़े गल चुके थे. उनके आस पास लकड़ी के पाटे थे. मगर वे भी गल कर अपना अस्तित्व खो चुके थे.
साधु समाधिस्थ थे.
मजदूरों को जब लगा कि वे जिंदा हैं तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा. वे एक एक पल की खबर कुवें के ऊपर मौजूद लोगों को दे रहे थे. ऊपर मौजूद कुछ लोगों ने यह खबर गांव में पहुंचा दी. कुवें के भीतर जिंदा साधु निकलने की खबर पर पूरा गांव वहां इकट्टठा हो गया.
तब तक साधु के आस पास खोदाई करके छाती तक की मिट्टी हटाई जा चुकी थी. उसी बीच साधु ने आंखें खोल दीं. उनकी आंखों में गजब का तेज था. उन्होंने कुवें के भीतर मौजूद मजदूरों को पानी लाने का आदेश दिया. कुवें के ऊपर से उनके लिये पानी भेजा गया.
साधु ने पानी को एक हथेली में लिया. कुछ क्षण उसे देखा फिर बुदबुदाये अरे यह तो कलयुग है. फिर उन्होंने अपने आपको दोबारा मिट्टी में दबा देने का आदेश दिया. उनके आदेश में जबरदस्त सम्मोहन था. वहां मौजूद लोग कोई प्रतिरोध न कर सके.
साधु को दोबारा मिट्टी में दबा दिया गया.
नलकूप का काम रोक दिया गया.
बात कई गांव तक फैल गई. कुछ लोगों ने आशंका जताई कि जिंदा आदमी को मिट्टी में दबाने के आरोप में पुलिस केश हो सकता है. इस डर से गांव के कुछ लोगों ने कुवें की दोबारा खोदाई की. मगर इस बार वहां साधु नही मिले. फिर भी उस कुवें का काम आगे नही बढ़ाया गया.
नलकूप के लिये दूसरी जगह का चयन किया गया.
भारत भूमि के संतों की लीला बड़ी निराली है.
उपरोक्त घटना से तीन बड़े रहस्य उजागर होते हैं. एक तो यह कि कुछ संतों में पानी देखकर यह पता लगा लेने की क्षमता होती है कि किस युग का पानी है. जैसे उपरोक्त साधु ने पानी से पता लगाया कि इस समय कलयुग चल रहा है.
दूसरा रहस्य यह कि समाधि में रहकर कुछ संत युगों तक जिंदा रह लेते हैं. जैसा कि उपरोक्त साधु की बातों से लगा कि वे कलयुल में समाधि से बाहर नही आना चाहते. किसी अन्य युग तक की समाधि ले रखी है.
तीसरा रहस्य यह कि कुछ सिद्ध संत जमीन के भीतर सफर तय कर लेते हैं. दोबारा कुवें को खोदा गया तो साधु वहां नही मिले. यानी कि उन्होंने अपना स्थान बदल लिया था. अर्थात् वे जमीन के भीतर समाधिस्थ अवस्था में ही कहीं और चले गये.
पाताल के प्राणियों के बारे में जमीन के भीतर चलने और जिंदा रहने का विवरण कई ग्रंथों में मिलता है.
उपरोक्त घटना संतों के रहस्यमयी संसार की एक झलक मात्र है.
*शिव शरणं*
क्रमशः