*संत जो अपने शरीर से निकल कर बाहर घूमने चले जाते थे*
सभी अपनों को राम राम
*वे सिद्ध योगी थे. योग बल से अपने शरीर से बाहर निकल जाते थे. बंद आखें देखकर लोगों को लगता था वे सो रहे हैं परंतु वे उस वक्त कहीं और होते थे. आंखें खोलते और दूसरी जगहों की खबरें सुनाते तो लोगों को बड़ा अचरज होता था.*
बात 1990 की है. तब मै कानपुर से प्रकाशित दैनिक आज अखबार में रिपोर्टर था. दो दिन की छुट्टी मिली तो एक मित्र के साथ आगरा गया. वहां से मथुरा का प्रोग्राम बन गया.
उनसे मेरी भेट मथुरा में हुई. वे कुछ शिष्यों के साथ श्रीकृष्ण जन्मभूमि के दर्शन हेतु आये थे. यमुना किनारे एक जगह डेरा जमाया था. मूल रूप से दक्षिण के रहने वाले थे. उन्हें लोग योगी महराज के सम्बोधन से पुकारते थे. वैसे उनका नाम नर्मदानंद था.
वे श्रेष्ठतम योगी थे. योग की तमाम मुद्रायें उन्हें सिद्ध थीं. कई मिनट तक सांस रोक कर रह लेते थे. योगबल से अपनी चेतना को शरीर से निकालकर प्रथक कर लेते थे.
मेरे साथ गये मित्र के एक रिश्तेदार मथुरा में रहते थे. वे योगी महराज की सेवा में लगे थे. उन्होंने उनके बारे में बताया. तो मै मिलने चला गया.
शिष्य लोगों को योगी महराज के पास ज्यादा देर नही रुकने देते थे. दर्शन करने आने वाले लोगों को पैर छूकर तुरंत जाना पड़ता था. ताकि योगी महराज का ध्यान भंग न होने पाये. वे अधिकांश वक्त ध्यान में ही रहते थे.
उनका ध्यान लगाने का तरीका दूसरों से अलग था. जमीन पर अधलेटी अवस्था, आंखें बंद. देखने से लगता जैसे आधे बैठे आधे लेटे सो रहे हैं. लेकिन वे ध्यान में होते थे.
मित्र के रिश्तेदार मुझे उनके पास तक ले गये. एक मिनट बाद ही उनके एक शिष्य ने मुझे जाने का इशारा किया. मगर मै वहीं योगी महराज के पास बैठ गया. उनके शिष्यों को जब पता चला कि मै पत्रकार हूं तो बैठा रहने दिया.
तकरीबन डेढ़ घंटे बाद उन्होंने आंखें खोलीं. उस बीच लोग आते जाते रहे. मै बैठा रहा. इत्तिफाक से जब उन्होंने आंखें खोली उस समय मै अकेला ही था. मुझे देखकर मुस्कराये. नाम और परिचय पूछा.
जैसा कि मैने पहले बताया मेरा गांव गंगा जी के किनारे है. गंगा जी की परिक्रमा करने वाले साधु संतों को उधर से गुजरना होता है. उनमें से कई रात्रि विश्राम के लिये गांव के मंदिर पर रुकते हैं. गंगा जी परिक्रमा करने वाले अधिकांश साधु सिद्ध संत होते हैं. मंदिर पर आने वाले साधु संतों के खाने रुकने की व्यवस्था हमारे घर से ही होती थी. इसलिये मुझे उनकी सेवा संगत का अवसर बचपन से ही मिला. कक्षा 8 के बाद पढ़ॉाई के लिये मैने गांव छोड़ा. तब तक अनगिलत सिद्ध संतों की सेवा संगत कर चुका था. साधु संतों को कैसी बातें करना अच्छा लगता है, उनकी दिनचर्या कैसी होती है, मुझे इसकी जानकारी थी. यहां तक की साधुओं की साधना शैली भी मुझे मालुम हो गई थी.
बातों बातों में योगी महराज मेरी साधु सेवा और संगत का पता लगा लिया. उन्होंने कहा आज रात यहीं रुको कल जाना.
मै रात में उनके डेरे पर रुक गया.
शाम को योगी महराज के कुछ शिष्यों के साथ मै भी बैठा था. धूप हवा से बचने के लिये एक अस्थाई टिन शेड बनाया गया था. कनातें लगाकर उसे कमरे की तरह बंद कर दिया गया था. योगी महराज उसी में रहते थे. वहां से बाहर देखने के लिये एक मात्र जगह थी वह था अंदर आने का रास्ता. हवा धूल न आये इस लिये शाम को उसे भी बंद कर दिया गया.
अब अंदर से बाहर कुछ नही दिख रहा था.
कुछ देर बाद योगी महराज ने अपने एक शिष्य से कहा बाहर जाकर देखो तीनों महिलायें रास्ता भटक गई हैं क्या.
उनका शिष्य उठकर बाहर गया. लगभग 5 मिनट बाद लौटा. बताया कि वहां तीन महिलायें थीं. वे कहीं से मथुरा घूमने आई हैं. मुख्य मार्ग से भटककर इधर आ गई थीं. मै उन्हें मुख्य रास्ते तक छोड़ आया.
शिष्य द्वारा दी गई जानकारी से मुझे विस्मय हुआ. कनात वाले उस कमरे से बाहर कुछ भी नही दिख रहा था. फिर भी योगी महराज को कैसे पता चला कि बाहर तीन महिलायें हैं. वे भटक रही हैं.
इस बारे में पूछने पर उन्होंने योग सिद्धी के बारे में बताया. योग ध्यान के जरिये वे अपने सूक्ष्म शरीर को स्थुल शरीर से बाहर निकाल लेते थे. सूक्ष्म चेतना भ्रमण करके बाहर का हाल चाल ले आते थे. उन दिनों वे अपनी सूक्ष्म चेतना को दूसरे लोकों तक ले जाने का अभ्यास कर रहे थे. जिसमें उन्हें तीन साल लगने वाले थे.
*शिव शरणं*
क्रमशः