बिना पूछे ही लोगों का हाल बता देने वाले संत
सभी अपनों को राम राम
*उनकी सिद्धियां बड़ी ही रोचक थीं. लोगों को देखते ही उनका हाल बता देते थे. अनजाने लोगों के भी नाम, उनके परिवार वालों के नाम, दोस्तों के नाम, पता सब बता देते थे. किस की जेब में कितने पैसे हैं यह भी बता देते थे. कौन क्या खाकर आया है वे बता देते थे. उन्हें कर्ण पिशाचिनी सिद्ध थी. वही लोगों की जासूसी करके उनका हाल बताती थी*.
लोग उन्हें भगवान मानते थे.
लोगों की मान्यता भ्रमपूर्ण थी. वे सिद्ध थे, भगवान नही.
सभी को एक बात हमेशा याद रखनी चाहिये. वह यह कि भगवान के अलावा कोई भी भगवान नही हो सकता.
कोई भी इंशान सिद्ध हो सकता है, सामर्थवान हो सकता है. मगर भगवान नही हो सकता.
वे खुद भी लोगों से कहते थे मुझे भगवान न मानो, इससे मुझे नर्क में जाना पड़ेगा. लेकिन चमत्कार को नमस्कार करने के आदी लोग उन्हें भगवान मानते थे.
इससे लगे दोष को मिटाने के लिये वे गंगा जी की परिक्रमा पर निकले थे.
उन्हें लोग सिद्ध बाबा के नाम से पुकारते थे. मूल रूप से बंगाल के रहने वाले थे. सिद्धियां अर्जित करने के लिये गंगासागर में 14 साल बिताये. गंगासागर में उनका आश्रम था. वहीं गुरू के सानिग्ध में कर्ण पिशाचिनी सिद्धि अर्जित की.
जब मै उनसे मिला तब तक कर्ण पिशाचिनी के बारे में कुछ नही जानता था. उनसे ही इस बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त हुई. कर्ण पिशाचिनी एक देवी हैं. सिद्ध होने पर वे साधक के कान में रहती हैं. जिस कान में वे रहती हैं उससे सुनाई देना बंद हो जाता है. जो कर्ण पुशाचिनी देवी कहती हैं वही उसे सुनाई देता है. कर्ण का अर्थ होता है कान. कान पर कब्जा करने के कारण देवी को कर्ण पिशाचिनी नाम मिला. उनके पास हर व्यक्ति के जीवन में घटी घटनाओं की जानकारी होती है. सामने आते ही वे लोगों के बारे में सब कुछ बता देती हैं. व्यक्ति का नाम क्या है. उसने कब क्या खाया. किससे कब क्या बातें कीं. कब किससे मिला. उस मुलाकात में क्या हुआ. उसने ऊपर के कपड़ों के नीचे क्या पहन रखा है. उसकी जेब में क्या है. आदि जानकारियां कर्ण पिशाचिनी देवी के पास होती हैं. जिन्हें वे साधक के कान में बताती हैं.
मगर व्यक्ति क्या सोच रहा है यह देवी को नही पता होता. उन्हें भविष्य की जानकारी नही होती. और न ही किसी समस्या का समाधान देती हैं.
देवी द्वारा बताई बातें जब साधक लोगों को बताता है तो लोग उसे चमत्कारिक व्यक्ति मानने लगते हैं. कुछ लोग उसे भगवान सा मानने लगते हैं. जिससे अधिकांश साधक कालांतर में अहंकार के शिकार होकर अधोगति को प्राप्त हो जाते हैं.
सिद्ध बाबा के साथ भी एेसा ही हुआ. उनके पास हजारों लोग आने लगे. सभी बाबा जी की जय जयकार करते न थकते. जिससे सिद्ध बाबा के मन में विचलन आने लगा. वे अहंकार और प्रपंच के शिकार होने लगे. समय रहते उनके गुरू ने उन्हें सतर्क किया और प्रायश्चित के लिये गंगा जी की परिक्रमा करने का आदेश दिया.
गुरू आज्ञा से वे उन दिनों गंगा मइया की पर्क्रमा पर निकने थे. उनके साथ चार शिष्य भी थे.
वे कानपुर के पास स्थित बिठूर में गंगा किनारे स्थित काली मंदिर के पास ठहरे.
तब मै कानपुर में रहता था. कभी कभी काली मंदिर दर्शन के लिये जाया करता था.
उस दिन दर्शन के लिये गया तो गंगा किनारे कुछ साधु दिखे. काली मां के दर्शन करके मै साधुओं से मिलने के लिये धारा की तरफ चला गया. दोपहर का समय था. साधु खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण कर रहे थे. मैने उन्हें प्रणाम किया तो खाने के लिये मुझे भी खिचड़ी दी.
साधुओं ने अपने रुकने के लिये छोटे आकार के दो टेंट बांध रखे थे. एक में उनके सिद्ध बाबा रहते थे दूसरे में शिष्य.
सिद्ध बाबा वाले टेंट के पास मै गया तो भीतर से मेरा नाम लेकर बुलाया गया. मै चकित सा टेंट के भीतर गया. वहां सिद्ध बाबा जमीन पर कम्बल बिछाकर लेटे थे. मुझे पास बैठने का इशारा किया. मै बैठ गया. सोचने लगा उन्हें मेरा नाम कैसे पता चला.
बाबा आंखें बंद करके लेटे रहे. कुछ मिनटों बाद उन्होंने आंखों खोलीं. मेरे बारे में बताना शुरू किया. मेरे घर परिवार में कौन कौन हैं. उनके नाम क्या हैं. मै क्या करता हूं. सहित उन्होंने मेरे बारे में सारी जानकारी दे दी. यहां तक कि मै पूर्व में किन किन संतों से मिला और उनसे मुझे क्या क्या मिला. यह सब भी बता दिया.
मै आश्चर्य में था. जिंदगी की कुछ बातें जिन्हें मै भूल चुका था, उन्होंने वे भी बता दीं.
पूर्व में मेरे द्वारा की गई संतों की सेवा से वे प्रभावित हुए. इसलिये मुझसे एेसे बात करने लगे जैसे हम पुराने परिचित हों. इसी प्रभाव में उन्होंने कर्ण पिशाचिनी के बारे में जानकारी दी. जिससे मेरे मन का कौतुहल रुका.
साधु वहां 15 दिन के लिये रुके थे. मै उनके साथ दो दिन रुका. इस बीच सिद्ध बाबा ने मुझे अपने शिष्यों की तरह अपनापन दिया. उन्होंने कर्ण पिशाचिनी सिद्धि और उसके मंत्र की शास्त्रीय जानकारी दी. साधना के दौरान उन्हं कैसे व्यवहार में लाना है यह भी सिखाया. खासतौर से मंत्र के उच्चारण और उसकी आवृत्तियों को सिखाया.
कर्ण पिशाचिनी साधना सिखाने के बाद सिद्ध बाबा ने मुझसे यह साधना न करने की हिदायत दी. उन्होंने कहा कुछ सालों बाद हमारी दोबारा मुलाकात होगी. तब तक मै दोषमुक्त हो चुका हुंगा. यदि चाहोगे तो तब मै अपने साथ रखकर तुम्हें कर्ण पिशाचिनी सिद्ध करा दूंगा.
9 साल बाद सिद्ध बाबा मुझे दोबारा मिले.
उस दिन मै हरिद्वार में था. एक मित्र के साथ गंगा स्नान कर रहा था. तभी उन्होंने मुझे देखा और पहचान लिया. वे अपने 10-12 शिष्यों के साथ थे. कहीं जा रहे थे. तभी मुझे देखा. रुक गये. मै नहाकर गंगा जी की धारा से बाहर निकला तो एक शिष्य को भेजकर मुझे अपने पास बुलवाया. मैने भी उन्हें पहचान लिया. वे एक आश्रम में रुके थे. अपने साथ मुझे भी वहां ले गये. उस रात मै उनके साथ ही रुका.
रात में उन्होंने कहा तुमसे मैने कर्ण पिशाचिनी सिद्ध कराने का वादा किया था. क्या करना चाहोगे.
मुझे नही लगता कि कर्ण पिशाचिनी की मुझे आवश्यकता है. मैने विनमरता पूर्वक उन्हें मना किया.
अगले दिन उन्हें गंगासागर के लिये रवाना होना था.
*शिव शरणं*
क्रमशः