आंखों से शक्तिपात करने वाले संत
सभी अपनों को राम राम
*वे आंखों से शक्तिपात करते थे. शक्तिपात की तीब्रता एेसी कि कलियों को खिलाकर फूल बना देते. पानी में चक्रवात पैदा कर देते. उनका शक्तिपात लोगों को क्षण भर में दूसरी दुनिया से जोड़ देता था.*
उन दिनों मै सत्यकथा लेखक था.
खोजी पत्रकारिता और लेखन में दक्ष लोग ही सत्यकथा लेखक बन पाते हैं. इसके लिये क्राइम रिपोर्टिंग और लेखन दोनो करना होता है. अखबारों में छपी किसी प्रमुख या रोचक घटना का चयन किया जाता है. फिर घटनास्थल पर जाकर उसकी पड़ताल करके तत्थ और फोटो इकट्ठे किये जाते हैं. उन तत्थों के आधार पर कहानी लिखी जाती है.
तब मै कानपुर में रहता था. उस दिन मैने हरदोई जिले के एक दूर दराज गांव की घटना का चयन किया. कानपुर से हरदोई के घटनास्थल तक पहुंचने में शाम हो गई. घटना के तत्थ इकट्ठे करते करते रात हो गई. मेरे साथ सम्बंधित थाने का एक पुलिस अधिकारी भी आया था. उसने बताया कि क्षेत्र में अपराधियों की गतिविधियां बहुत रहती है. रात में लुटेरे सक्रिय हो जाते हैं. इसलिये आप चल कर थाने में रूक जाइये. सुबह चले जाना.
वहां के ग्राम प्रधान ने अपने साथ रुकने का आग्रह किया.
मुझे गांव में रहने की आदत थी, सो मैने ग्राम प्रधान का आग्रह स्वीकार कर लिया. क्योंकि घटना से सम्बंधित कुछ लोगों के फोटो अभी नही मिल पाये थे. सोचा गांव में रुकुंगा तो सुबह बाकी लोगों के फोटो इकट्ठे कर लूंगा. पुलिस अधिकारी ने ग्राम प्रधान को मेरी सुरक्षा के विशेष निर्देश दिये और लौट गया.
गांव वालों ने उससे पहले गांव में कोई पत्रकार नही देखा था. इसलिये कई लोग मेरे साथ लगे रहे. उनमें से एक ने बातों बातों में बताया कि पास के गांव में एक महात्मा आकर रुके हैं. बड़े पहुंचे हुए लगते हैं. नंगी आंखों से घंटो सूरज की तरफ देखते रहते हैं.
मुझे साधु संतों से मिलने का शौक बचपन से था. मैने महात्मा से मिलने की इच्छा जताई. ग्राम प्रधान कुछ अन्य गांव वालों के साथ मुझे उस गांव में ले गया.
दोनो गांवों के बीच आधे घंटे का रास्ता था.
हम पैदल ही गये.
वहां गांव से बाहर एक चबूतरा बना था. उसी पर तिरपाल की कुटिया बनाकर महात्मा जी के रहने का स्थान बनाया गया था. तिरपाल से बाहर अलाव जल रहा था. महात्मा जी की सेवा में लगे लगभग एक दर्जन गांव वाले अलाव के आस पास बैठे थे. महात्मा जी तिरपाल के भीतर थे. एक व्यक्ति ने भीतर जाकर उन्हें बताया कि कुछ लोग मिलना चाहते हैं.
उन्होंने अदर बुला लिया.
तिरपाल के भीतर मिट्टी का एक दीपक जल रहा था. प्रकाश का एक मात्र वही साधन था. कुटिया में अधिक जगह नही थी. कुछ सामान इधर उधर बिखरा पड़ा था. एक तरफ बोरे का बिस्तर बिछा था. महात्मा जी उस पर अधलेटे से बैठे थे. उनके एक हाथ में चिलम थी. उससे हल्का हल्का धुंवां निकल रहा था. यानी की वे चिलम पीते थे और अभी अभी उसका कस लिया था. तिरपाल के भीतर गांजे की महक भरी थी. मतलब वे चिलम में गांजा पी रहे थे. हम लोगों के भीतर जाते ही उन्होंने चिलम पास बैठे एक गांव वाले को पकड़ा दी.
आमतौर से गांजा चरस पीने वाले, नशा करने वाले लोग मुझे कभी पसंद नही. मगर साधु संतों के बारे में मेरी धारणा अलग है. जंगलों में रहने के दौरान दवाओं के अभाव में वे इन चीजों का उपयोग उपचार के लिये करते हैं. जैसे गांजे के धुंवे को वे दमे (स्वांस रोग) के उपचार में उपयोग करना जानते हैं. भांग का उपयोग कैंसर के उपचार में कर लेते हैं. इसी तरह जिसे हम नशा कहते हैं उन चीजों का वे लोग कई तरह के उपचार में प्रयोग करते हैं. प्रयोग से पहले उन्हें शिवलिंग पर चढ़ाकर शोधित करते हैं.
शिवलिंग में नकारात्मकता सोख लेने की विशेष क्षमता होती है.
भीतर जाने पर महात्मा जी ने कहा आ गये तुम. मुझे लगा वे मेरे साथ आये किसी गांव वाले से कह रहे हैं. मगर वे उनसे नही कह रहे थे. उनका सम्बोधन मेरी तरफ था. सबने उनके पैर छुवे, मैने भी छुवे.
पैर छुते ही महात्मा जी ने सबको बाहर जाने के लिये कहा.
मुझे इशारे से बैठने के लिये कहा.
तब मुझे लगा शायद मुझसे कह रहे थे कि तुम आ गये.
उन्होंने गांव वाले को चिलम मुझे देने का इशारा किया. उसने चिलम मेरी तरफ बढ़ा दी. मैने धन्यवाद के साथ इंकार कर दिया.
इस पर गांव वाले ने अरे बाबाजी का प्रसाद है, एक सूटा लगा लो.
अगले पल वह कांपने लगा. उसकी बात सुनकर महात्मा जी ने उसे बहुत तेज आवाज में डांटा. उनकी आवाज से बाहर मौजूद लोग भी सकते में आ गये. महात्मा जी ने उस गांव वाले को भी तिरपाल की कुटिया से बाहर भगा दिया. साथ ही बाहर जाते समय उससे चिलम छीनकर उसी पर फेंक मारी. चिलम की आग इधर उधर पैल गई. जिसे मैने एक टाट से रगड़ गई बुझाया.
महात्मा जी ने गांव वाले की तरफ से मांफी मांगते हुए कहा मांफ करना बेटा नशेबाज लोग नशे को प्रासद का नाम देकर दूसरों को भी नशे का आदी बनाने से बाज नही आते. एेसे ही त्रिपुरा के जंगलों में रहने के दौरान स्वांस की परेशानी से बचने के लिये एक साधु के कहने पर मै गांजा पीने लगा. अब छुड़ाये नही छूटता.
अब कुटिया में हम दो ही थे.
महात्मा जी ने मेरा परिचय लिया. जिससे पता चला कि लगभग 8 साल पहले वे हमारे गांव के मंदिर में 6 दिन रहकर आये थे. उन्हें पिता जी का नाम याद था. मै भी उनकी यादों में था. हलांकि मुझे याद नही था कि वे गांव आये थे.
उन्होंने मुझसे रात में अपनी कुटी में रुकने को कहा. मुझे संतों के साथ रहना बहुत पसंद है.
मैने तुरंत हां कर दी.
वे रात आठ बजे के बाद किसी को कुटिया में घुसने नही देते थे. क्योंकि उसके बाद देर रात तक ध्यान साधना करते थे. इसलिये रात में मेरा उनकी कुटिया में रुकना गांव वालों के लिये अचरज की बात थी. बातों बातों में पता चला कि वे दिन में एक घंटे सूर्य त्राटक करते थे. अर्थात् तपते सूर्य को एक घंटे तक अपलक देखते थे. रात में अग्नि त्राटक करते थे. उसके बाद लगातार 3 घंटे प्राणायाम करते थे.
एेसा वे 12 साल से कर रहे थे. इस कारण उनकी आंखों में शक्तिपात की जबरदस्त क्षमता उत्पन्न हो गई थी. मैने उनसे शक्तिपात का प्रभाव देखने की इच्छा जताई तो उन्होंने सुबह का इंतजार करने को कहा.
सुबह मैने उनके शक्तिपात के चमत्कारिक परिणाम देखे. तिरपाल की कुटिया के दायीं तरफ गेंदे के कुछ पौधे लगे थे. उनमें कुछ फूल खिल चुके थे. कुछ कलियां खिलकर फूल बनने का इंतजार कर रही थीं. स्वाभाविक रूप से उन्हें अगले दिन खिलना चाहिये था. महात्मा जी ने एक परिक्व कली को देखना शुरू किया. लगभग दो मिनट देखते रहे. वे उस पर आंखों से शक्तिपात कर रहे थे. मुझसे कहा इसे (कली को) याद रखना. मैने उसे अपने मस्तिष्क में बैठा लिया.
फिर हम लोग कुटिया में चले गये. 10 मिनट बाद उन्होंने मुझसे कहा बाहर जाकर उस कली को तोड़ लाओ. मै गया. वहां कली नही थी. उसकी जगह फूल था. यानि कली खिलकर फूल बन चुकी थी. मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. उसे तोड़कर महात्मा जी के पास ले गया. उन्होंने बताया कि शक्तिपात के कारण कली समय से पहले फूल बन गई. फिर उन्होंने एक बाल्टी पानी मंगाया. उसमें माचिस की एक तीली डाल दी.
महात्मा जी स्थिर दृष्टि से तीली को देखने लगे. तीली पानी की सतह पर गोल घूमने लगी. कुछ देर बाद तीली बहुत तेज घूम रही थी. जैसे बाल्टी के पानी में चक्रवात पैदा हो गया हो. मगर पानी बिल्कुल स्थिर था. अर्थात शक्तिपात सिर्फ इच्छित वस्तु को ही प्रभावित कर रहा था.
मैने एेसा होते पहले कभी नही देखा था.
मेरे आग्रह पर मुझ पर शक्तिपात किया. मै सामने बैठा था. वे मेरे माथे के बीच में देख रहे थे. अपलक देखते रहे. कुछ ही क्षणों में शक्तिपात का प्रभाव महसूस होने लगा. एेसा लग रहा था मानो मै होश में नहीं हूं. किसी और ही दुनिया से जुड़ गया. आंखें बंद थीं. फिर भी लग रहा था मै कोई फिल्म देख रहा हूं. सैकड़ों दृश्य दिमाग से गुजर गये.
कुछ ही मिनटों में जन्मों का सफर तय कर डाला.
जिसे मै भगवान मानता था उसे बहुत नजदीक पाया.
सब कुछ बदला बदला सा लग रहा था.
शक्तिपात के बाद 4 घंटे तक मै अपने आप में नही था. लग रहा था मै उड़ा चला जा रहा हूं.
मै महात्मा जी के साथ दो दिन रहा. इस बीच उन्होंने मुझे शक्तिपात मंत्र की जानकारी दी. उसे सिद्ध करने की विधि बताई. त्राटक की तकनीकी बारीकियां समझाई.
*शिव शरणं.*
क्रमशः