सभी अपनों को राम राम
वैसे तो शास्त्र काल से शक्तिपात अति महत्व का विषय रहा है. इसे करने के लिये अत्यधिक सक्षम साधक की उपयुक्त बताये गये हैं. मगर दैनिक जीवन में शक्तिपात के अन्य स्वरूप हर दिन हमारे सामने आते हैं.
ऋषियों-मुनियों ने शक्तिपात की प्रभावी किंतु सरल विधि समाज को दी. वह है बड़ों के पैर छूना. पैर छूने के दौरान माता पिता और बुजुर्ग स्वाभाविक रूप से बच्चों के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हैं. इससे अनजाने ही एक तरह का शक्तिपात हो जाता है. माता पिता और बड़ों की उर्जायें उनकी हथेलियों से निकलकर बच्चों के सहस्रार चक्र से होती हुई उनके सूक्ष्म शरीर में व्याप्त हो जाती हैं. इन उर्जाओं में जीवन के विभिन्न अनुभवों और सकारात्मक भावनाओं की उर्जायें शामिल होती हैं.
जिसका बच्चों के जीवन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इसी कारण सनातन धर्म माता पिता के चरण स्पर्श करने पर सदैव जोर देता रहा है. ताकि बच्चों पर हर दिन शक्तिपात होता रहे. और निरंतर उनके जीवन की रुकावटें हटती रहें.
इसी तरह गुरूओं, शिक्षकों के पैर छूने का संस्कार सनातन धर्म में प्रबल है. क्योंकि गुरूओं और शिक्षकों में अध्ययन की प्रचुर उर्जायें होती हैं. जब वे शिष्यों के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हैं तो उनकी उर्जाओं का शक्तिपात होता है. शिष्य के सहस्रार चक्र से होती हुई सकारात्मक उर्जायें उनके सूक्ष्म शरीर में व्याप्त हो जाती हैं. जिससे ज्ञान बढ़ता है और रुकावटें हटती हैं.
कालांतर में लोगों ने पैर छूने को संस्कार की बजाय औपचारिकता मान लिया. जिससे पैर छूने के तरीके बदल गए. लोग पैर छूने के नाम पर घुटने छूने लग गये. जिससे आशीर्वाद देने वाले के हाथ सिर तक नही पहुंचते और शक्तिपात नही हो पाता.
पीढ़ियों के बिगड़ने का एक बड़ा कारण है कि उन्हें दैनिक जीवन की मुश्किलें कम करने में सक्षम सकारात्मक शक्तिपात नही मिल पा रहा. न माता पिता, बुजुर्गों से और न ही शिक्षकों से. शक्तिपात के अभाव में उनके मनोभावों की खुराक पूरी नही होती. एेसे में बच्चें मन की खुराक पूरी करने के लिये मोबाइल फोन, इंटरनेट, टी.वी. व अन्य साधनों का उपयोग करते हैं. जिनसे नकारात्मक उर्जायें उत्सर्जित होती हैं. जिनकी गिरफ्त में पीढ़ियां प्रभावित हो गई हैं. मनोभाव बिखराववादी हो गई हैं.
आज दोबारा जरूरत है कि नई पीढ़ी को बड़ों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का विज्ञान समझाया जाये.
सबका जीवन सुखी हो, यही हमारी कामना है.
शिव शरणम्