मृत्युंजय शक्तिपात-6

अपने शरीर से बाहर निकलने की तकनीक


48383843_735758350144249_5267514278847447040_nसभी अपनों को राम राम
साधकों में शक्तिपात की ग्रहणशीलता बढ़ना उत्साहजनक होता है. शक्तिपात ग्रहण कर रहे साधकों के कुछ सवालों के जवाब देना जरूरी है. ताकि भ्रम न उत्पन्न हो.
सवाल 1…
खुद को अपने शरीर से बाहर निकलते नही देख पा रहे. इसे कैसे देखें.
उत्तर…
शक्तिपात के दौरान नाभि चक्र पर ध्यान लगायें. कुछ समय में वहां उर्जा की हलचल का अहसास होगा. तब अपने नाभि चक्र से सूक्ष्म चेतना के विस्तार का आग्रह करें. कहें- मेरे दिव्य नाभि चक्र आप सकारात्मक उर्जायों के भंडार हैं. अपनी उर्जा केंद्र से मेरे सूक्ष्म शरीर को अत्रिक्त उर्जायें देकर उसे मेरे सामने ला दें.
पूरी क्रिया के दौरान आंखें बंद रखें.
जब सामने किसी की अदृश्य मौजूदगी का अहसास हो तब अपने तीसरे नेत्र से उसकी पहचान करने का आग्रह करें. कहें- मरे दिव्य तीसरे नेत्र मुझे सामने स्थित मेरे सूक्ष्म शरीर को दिखायें.
फिर खुद के सामने दिखने का धैर्य के साथ इंतजार करें.
इस अभ्यास को संयम के साथ करें. उत्साह जनक नतीजे मिल ही जाते हैं.
ध्यान रखें. सूक्ष्म चेतना को शरीर से बाहर निकालना बहुत ही संवेदनशीलता का विषय है. सावधानी से करें. इसे किसी सक्षम निगरानी में सीखा जाता है. शक्तिपात के दौरान सभी साधक मेरी उर्जाओं की निगरानी में होते हैं. सलाह है कि शक्तिपात के समय के अलावा इसे न करें.
सवाल 2…
देवत्व जागरण रुद्राक्ष नही है, क्या उसके बिना या दूसरे किसी रुद्राक्ष को धारण करके शक्तिपात ले सकते हैं.
उत्तर…
यथा शीघ्र देवत्व जागरण रुद्राक्ष प्राप्त कर लें. चक्रों के जागरण के शक्तिपात में उसकी विशेष भूमिका होगी.
सवाल 3…
शक्तिपात का समय क्या है.
उत्तर…
सुबह 7.30 से 10 बजे तक किसी भी समय 20 मिनट बैठें.
सवाल 4…
मृत्युंजय प्राणामय कैसे करें.
उत्तर…
शक्तिपात की उर्जायें सांसों के जरिये रोम रोम में व्याप्त की जाती हैं. इसलिये प्राणायाम के साथ ग्रहण किया गया शक्तिपात प्रभावशाली होता है. मृत्युंजय प्राणायाम के समय त्रयक्षरी मृत्युंजय मंत्र ऊं ह्रौं जूं सः का उपयोग किया जाता है. ऊं ह्रौं का जप करते हुए गहरी सांस अंदर खीचनी है. सांस धीरे धीरे खींचें. कुछ क्षण रोकें. फिर जूं सः का जप करते हुए सांस को धीरे धीरे छोड़ें. पूरी सांस बाहर निकाल देने के बाद कुछ क्षण रुकें. फिर नई सांस दोबारा अंदर लें.
शक्तिपात के दौरान प्राणायाम जारी रखें.
सवाल 5…
शक्तिपात के समय मन विचलित होता है क्या करें.
उत्तर…
आंखें बंद करके सोचें ऊं ह्रौं जूं सः मंत्र सामने लिखा है, आप उसे पढ़ें. ध्यान मंत्र पर टिक जाएगा.
सवाल 6…
प्रतिदिन भोजन दान के लिये कोई व्यक्ति नही मिलता, क्या करें.
उत्तर…
चाहें तो हमारी संस्था के जरिये इस काम को सम्पन्न कर सकते हैं. उसके लिये हेल्पलाइन पर सम्पर्क कर लें.
सवाल 7…
विद्या दान कैसे करें.
उत्तर…
विद्या दान से ज्ञान और सौभाग्य जागता है. इसके दो तरीके प्रचलित हैं. एक किन्ही जरूरत मंद लोगों को नियमित पढ़ायें. पढ़ने में उनकी सहायता करें.
दूसरे तरीके में लोग पुस्तकों व अन्य पाठ्य सामग्री का दान करते हैं. दान में वही पुस्तकें दें जो लोगों के पास पहले से न हों. और जिनको पढ़ने से उनके अध्यात्मिक व भौतिक जीवन का विकास हो सके.

सुझाव…
शक्तिपात ग्रहण कर रहे सभी साधक 35 दिन का शक्तिपात पूरा होने तक *शिवगुरू से देवदूतों की मांग* पुस्तक कम से कम 10 लोगों को दान या उपहार के रूप में दें. पुस्तक प्राप्त करने के लिये अपने नजदीकी बुक स्टाल या प्रभात प्रकाशन से सम्पर्क करें.
सवाल 8…
क्या रोज अनुभूतियां लिखना जरूरी है.
उत्तर…
एेसा करना दो कारणों से जरूरी है. सभी अनुभतियां मै पढ़ता हूं. उनके आधार पर साधकों की वर्तमान उर्जा का आकलन करता हूं. सभी साधकों के फोटो मेरे पास हैं. आवश्यकता दिखने पर साधक के आभामंडल को बुलाकर उसे अलग से उर्जित करता हूं.
दूसरा कारण है कि साधना के दौरान होने वाली अनुभूतियों की चर्चा अधिक से अधिक करनी चाहिये. इससे अवचेतन शक्ति सिद्धियां अर्जित करने की शक्ति का जागरण करती है. मेरा सुझाव है कि सभी साधक ग्रुप में अनुभूतियां लिखने के साथ ही अन्य पात्र व्यक्तियों से उनकी चर्चा भी करें.
सवाल 9…
क्या शक्तिपात के दौरान किसी तरह का परहेज करना है.
उत्तर…
हां. मनचाही उपलब्धियों के लिये बहुत जरूरी है कि साधक किसी की आलोचना न करें.
सबका जीवन सुखी हो, यही हमारी कामना है.
शिव शरणं

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