मृत्युंजय शक्तिपात-5

पुराने पापों के लिये उर्जाओं का चक्रवात


48394555_735175236869227_5092768397628801024_n.jpgसभी अपनों को राम राम
जीवन की सभी समस्याओं का कारण पापयुक्त नकारात्मक उर्जायें होती हैं. चाहे इस जन्म की हों या बीते जन्मों की. इन उर्जाओं को कुंडली के द्वारा आसानी से डिकोड किया जा सकता है. उर्जा विद्वान आभामंडल की परतों में जाकर इनका पता लगा लेते हैं.
इन्हें हटाये बिना जीवन में सुख स्थापित नही किये जा सकते. कामनायें पूरी नही हो सकतीं. साधनायें पूरी नही हो सकतीं. सिद्धियां अर्जित नही होो सकतीं.
बहुत बार लोगों द्वारा अपनाये विभिन्न उपाय और पूजा पाठ फलित होते नजर नही आते. एेसा लगता है जैसे उनका कोई असर ही नही हुआ.
जबकि असर हुआ होता है. उनके प्रभाव से आभामंडल में जमी पाप युक्त उर्जाओं का कुछ अंश नष्ट होता है. किंतु पाप युक्त उर्जाओं की अधिकता के कारण वह प्रभाव सामने नही आ पाता जिसके लिये पूजा या उपाय किये गये थे.
पाप युक्त उर्जाओं की त्वरित सफाई के लिये शक्तिपात का उपयोग भी किया जाता है.
सक्षम गुरू अपने शिष्यों पर शक्तिपात करके उनके आभामंडल में उर्जाओं का चक्रवात उत्पन्न करते हैं. यह चक्रवात क्रमशः उत्तरी और दक्षिणी दिशा में रुक रुककर घुमाया जाता है. जिससे आभामंडल की परतों के किनारों पर जमी पापयुक्त उर्जायें विखंडित होकर निकल जाती हैं. इसे एेसे समझें जैसे वासिंग मशीन में कपड़े साफ करने की प्रक्रिया. कपड़ों के रेशों में फंसी गंदगी को निकालने के लिये मशीन उन्हें क्लाकवाइज और इंटी क्लाकवाइज घुमाती है.
आभामंडल में चक्रवात बहुत ही सावधानी का विषय होता है. इसमें जरा भी हड़बड़ी या चूक नही होनी चाहिये. इसे कई चरणों में करना होता है. ताकि आभामंडल की उर्जा परतें फैलकर बिखरने न पायें. उनकी आकृति बिगड़ने न पाये.
शक्तिपात करने में वाले सिद्धों का सूक्ष्म शरीर (आभामंडल) में चक्रवात पर मतभेद भी है. जो विद्वान अपने शिष्यों से अधिक प्रेम करते हैं. उनका तर्क है पूर्व जन्मों में किये कर्मों की सजा इस जन्मों में ज्यादा लम्बी नही चलनी चाहिये. शिष्यों की मुश्किलें जल्द दूर होने चाहिये. अन्यथा पापयुक्त उर्जाओं की चपेट में कुछ साधकों का सारा जीवन संघर्ष और दुखों में बीत जाएगा. उन्हें सिद्धियां अर्जित करने की क्षमता ही नही मिल पाएगी.
इसके विपरीत शक्तिपात में सक्षम दूसरे वर्ग के सिद्ध इसे सही नही मानते. उनका तर्क है जो किया है उसकी सजा तो मिलनी ही चाहिये. इससे कोई फर्क नही पड़ता कि सजा किस जन्म में मिले. यह प्रकृति का विधान है. इसे मूलरूप में चलते रहने देना चाहिये.
एेसे विद्वान कहते हैं शक्तिपात से सूक्ष्म शरीर की सिर्फ उर्जा नाड़ियों को खोला जाना चाहिये. अधिक आवश्यता हो तो उर्जा चक्रों और कुंडलिनी को सक्रिय किया जा सकता है.
मगर साधकों की इससे अधिक सहायता नही की जानी चाहिये. पाप कर्मों की उर्जाओं से मुक्ति पाने का दायित्व साधकों का है. उन्हें सदाचार और सत्कर्मों के द्वारा खुद ही पाप उर्जाओं से मुक्त होना चाहिये.
मै दोनों तरह के सिद्धों का सम्मान करता हूं.
मेरा मानना है शिव शिष्यों के पाप स्वयं भगवान शिव दूर करते हैं. इसलिये मै शक्तिपात में भगवान शिव की उर्जाओं का उपयोग करके आभामंडल में चक्रवात की प्रक्रिया पूरी कर रहा हूं. बस शक्तिपात प्राप्त कर रहे साधकों से आग्रह है कि भविष्य में अपनी लाइफ स्टाइल में सदाचरण बनाये रखें.
आभामंडल में उर्जाओं के चक्रवात के समय बेचैनी और चक्कर आने जैसी स्थिति बनें तो विचलित न हों. अपने आप ठीक हो जाएगी. आभामंडल का चक्रवात कई बार साधक को ब्रह्मांड घूं रहा है. या वह स्वयं घूं रहा है. एेसा अहसास कराता है. एेसा लगे तो भी विचलित न हों. अधिक वाइब्रेशन या झनझनाहट, दर्द, इचिंग, गर्माहट या ठंड का अहसास हो तो भी विचलित न हों.
भोजन दान और विद्या दान जारी रहना चाहिये.
जो देवत्व जागरण रुद्राक्ष के बिना शक्तिपात ग्रहण कर रहे हैं, बेहतर परिणामों के लिये उन्हें यथाशीघ्र देवत्व जागरण रुद्राक्ष सिद्ध करके धारण कर लेना चाहिये.
बताते हुए खुशी हो रही है कि कुछ साधक बहुत अच्छी स्थिति में शक्तिपात ग्रहण कर रहे हैं. उनमें से कुछ सुनिश्चित रूप से सिद्धियां अर्जित करके सम्मान और प्रसिद्धी प्राप्त करेंगे.
*सबका जीवन सुखी हो, यही हमारी कामना है*
*शिव शरणं*

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