पूर्व जन्मों की दूषित उर्जाओं का निष्कासन
सभी अपनों को राम राम
शक्तिपात का मतलब है साधक के साथ जन्मों से चले आ रहे पापों का अंत. पाप का अर्थ है दुख. दुख दूषित उर्जाओं से उत्पन्न होते हैं. तमाम लोगों के साथ कई जन्मों की दुषित उर्जायें ट्रेवल कर रही होती हैं. उन्हें पता ही नही चलता कि उनसे क्या गलती हो रही है. उनसे क्या चूक हो रही है. जो परेशानियां एक के बाद एक पीछे लगी हैं. पुरुषार्थ फलित नही हो पाता. सारा जीवन संघर्ष में बीतता है. बेचैनी में बीतता है. उदासी में बीतता है.
पूर्व जन्मों से चली आ रही दूषित उर्जायें इसका प्रमुख कारण होती हैं. पुरुषार्थ पर उर्जाओं का प्रदूषण छाया रहता है. इन्हें हटाया ही जाना चाहिये.
इसके लिये आभामंडल की सभी 49 परतों की व्यापक सफाई की जानी चाहिये. लेकिन उससे पहले प्रथम चरण में आभामंडल की ऊपरी 12 परतों को ठीक से साफ कर लिया जाना चाहिये. अन्यथा वे अनदर की परतों का निरंतर दूषित करती रहती हैं.
सक्षम गुरू इन्हें साफ करने में प्रायः 6 से 18 दिन तक का समय लगाते हैं. जो गुरू शक्तिपात की विशेष साधनायें करके साधकों पर अपनी शक्तियों को खर्च करने का साहस दिखाते हैं वे इस काम को तीन दिन में कर डालते हैं.
मृत्युंजय शक्तिपात के तहत साधकों के आभामंडल की ऊपरी 12 परतों को साफ किया जा चुका है.
अगले चरण में सभी 49 परतों की सफाई आरम्भ होगी.
1. आभामंडल की सफाई विर्वाध हो सके और साधक जन्म जमान्तर से चली आ रही पाप ग्रस्त दूषित उर्जाओं से मुक्त हो सकें इसके लिये बहुत जरूरी है कि प्रतिदिन किसी गरीब को भोजन दान करते रहें. भोजन दान से अवशेष उर्जायें आभामंडल से बाहर निकल जाती हैं. साथ ही आभामंडल का विस्तार होता है.
2. इस बीच जिन्होंने नही शुरू किया हो वे विद्या दान भी तुरंत आरम्भ करें. विद्या दान से आज्ञा चक्र और सौभाग्य चक्र का विस्तार होता है. ज्ञान और सौभाग्य का जागरण होता है.
विद्या दान के तहत किसी जरूरतमंद को पढ़ायें. या पुस्तकों का दान करें.
शक्तिपात में भगवान शिव की पद्धति और उनकी ही उर्जाओं का उपयोग हो रहा है इसलिये बहुत अच्छा होगा कि शिव ज्ञान से जुड़ी हुई पुस्तकों का दान करें.
कल किसी के पूछने पर मैने उसे *शिवगुरू से देवदूतों की मांग* पुस्तक का दान करने का सुझाव दिया था.
3. खुद को नाभि चक्र के जरिये अपने शरीर से निकल कर सामने आ जाने की क्रिया का अभ्यास जारी रखें.
*सबका जीवन सुखी हो, यही हमारी कामना है*
*शिव शरणं*