हम सबके पास आते ही रहते हैं भूत-प्रेत…?
राम राम मै शिवांशु
करोड़ों आभार उर्जा नायक महराज को और बहुत बहुत धन्यवाद आपको मित्र इस दिव्य ज्ञान को सिखाने के लिये. गिरिजा शरण जी ने उर्जा सीखने के बाद मुझे धन्यवाद दिया.
चक्रों के जरिये पंच तत्व की शक्तियों का उपयोग सीखने के लिये गिरिजा शरण जी मेरे साथ दो दिन और रुके. सीखने के दौरान वे एक श्रेष्ठ स्टूडेंट की तरह पेश आये. कभी भी इस बात का बोध नहीं होने दिया कि वे एक महान साधक और सिद्ध पुरुष हैं.
उन्होंने एक सवाल पूछा था कि भूत प्रेत, जादू-टोना आदि के बारे में विज्ञान क्या सोचना है. और इस पर उर्जा विज्ञान की व्याखाया क्या है?
अध्यात्म में विज्ञान के प्रति उनकी जिज्ञासा मुझे भली लगी. गुरुदेव मानते हैं कि जो लोग अध्यात्म और विज्ञान को साथ साथ महत्व देते हैं. वे दुनिया के बेहतर लोगों में से हैं.
उक्त सवाल के बारे में गुरुवर कहते हैं कि अभी तो विज्ञान इस विषय से परहेज करता है. लेकिन एक न एक दिन उनका रुझान इस तरफ बढ़ेगा. तब वे उस रहस्यमयी दुनिया को आम जिन्दगी का हिस्सा बना देंगे. कुछ काम शुरू भी हो चुका है. क्रिलियन कैमरों से आभामंडल की तरह ही अदृष्य शक्तियों, उर्जाओं के भी फोटो लिये जा सकते हैं. औरा कैमरे भी इस दिशा में सक्षम हो सकते हैं. अदृश्य उर्जाओं की आवाज रिकार्ड की जा सकती हैं. उनकी मौजूदगी के संकेत रिकार्ड करने के उपकरण बन रहे हैं.
उर्जा विज्ञान में पराशक्तियों की सार्थक व्याख्या है. उर्जा चक्र हमारे सूक्ष्म शरीर के प्रमुख अंग हैं. इनका काम है ताजी ब्रह्मांडीय उर्जाओं को बाहर से लेना और यूज की जा चुकी उर्जाओं को शरीर से बाहर निकालना.
गौरतलब है कि इन्हीं ब्रह्मांडीय उर्जाओं ने पंच तत्व के रूप में शरीर का निर्माण किया है और यही इसे चलाती हैं. इस उर्जाओं का असंतुलन ही तन, मन, धन की सभी तरह की परेशानियों का कारण होता है.
जो लोग संजीवनी उपचार सीख रहे हैं, वे इस व्याख्यान को ध्यान से पढ़ें.
उर्जा चक्रों द्वारा बाहर निकाली गई यूज उर्जा नकारात्मक हो जाती है. ठीक वैसे ही जैसे भोजन का बचा हुआ अवशेष मल-मूत्र के रूप में गंदा व नकारात्मक होता है.
प्रयुक्त हो चुकी उर्जा चक्रों से बाहर निकल कर प्रायः 6 इंच से 2 फुट की दूरी पर रुक जाती है. और वहां जमा होने लगती है. समय से हटाया न जाये तो ये गंदी उर्जा चक्रों को जाम करके उन्हें फंसा देती है. जिससे चक्रों की क्रियाशीलता कम हो जाती है. यह स्थिति लम्बे समय तक चले तो चक्र निष्क्रिय हो सकते हैं.चक्रों के निष्क्रिय होने से शरीर प्राण शक्ति को ग्रहण करना बंद कर देता है. इसे ही मृत्यु कहा जाता है.
शरीर का निर्माण करते समय शायद भगवान को पता था कि ज्यातर लोग इस विज्ञान से अंजान होंगे. एेसी दशा में वे चक्रों को साफ नहीं कर सकेंगे. तो जीवन चलना असंभव हो जाएगा. वैसे तो नमक के पानी से नहाने से चक्रों पर जमा नकारात्मक उर्जा टूटकर बह जाती है, मगर ज्यादातर लोगों को नमक के पानी से नहाने के बारे में भी नही पता होता.
गुरुदेव बताते हैं कि इसके जवाब मे ईश्वर ने चक्रों की सफाई के लिए सफाई कर्मचारी बनाये. वे बहुत छोटे छोटे जीव हैं. उनका शरीर प्लाज्मा का बना होने के कारण वे साधारण आंखों से दिखाई नहीं देते. इन्हें हम नकारात्मक तत्व कहते हैं.
उनका काम है अपने भोजन की तलाश में भटकना. उनका भोजन है हमारे उर्जा चक्रों से निकलने वाली नकारात्मक उर्जा.
वे शमशान, कब्रिस्तान, लम्बे समय से बंद पड़ी अंधेरी जगहों, बदबूदार या सीलन युक्त गंदी जगहों में समूह बनाकर रहते हैं. बहुत दूर से ही अपने भोजन को देख लेते हैं. समूह बनाकर आते हैं और हमारे चक्रों से निकली नकारात्मक उर्जा खाकर चले जाते हैं. इस तरह हमारे चक्रों की सफाई हो जाती है.
इस तरह हम सबके पास ये आते ही रहते हैं. इससे कोई फर्क नही पड़ता कि व्यक्ति पुण्यात्मा है या पापी.
लेकिन, जो लोग लम्बे समय तक तनाव में रहते हैं, गुस्सा करते रहते हैं, भय में रहते हैं या ज्यादा समय तक दुखी रहते हैं, या बहुत अधिक नकारात्मक सोचते हैं. उनके भीतर हर समय नकारात्मक उर्जा का निर्माण होता है. जो चक्रों के जरिए निकलती है.
जब नकारात्मक तत्व इन उर्जाओं को खाने के लिए आते हैं तो लगातार उर्जा निकलते देख उन्हें लगता है कि भोजन की तलाश में अब कहीं और जाने की जरूरत नहीं. वे चक्रों की सुरक्षा जाली में ही चिपककर रहने लगते हैं. अन्दर से निकल रही गंदी उर्जाओं को खाते रहते हैं.
चूंकि ये नकारात्मक उर्जाएं खाते हैं इसलिए इनकी प्रवृत्ति भी नकारात्मक होती है. चक्रों की सुरक्षा जाली में चिपके रहने के दौरान ये उसे कुतरते भी रहते हैं. कुछ सालों में उसे कुतर कर छेद बना डालते हैं. छेद के जरिये शरीर में घुस जाते हैं. और शरीर व व्यक्तित्व पर कब्जा कर लेते हैं.
चक्रों में घुसने के बाद ये बहुत शक्तिशाली हो जाते हैं. हमारी भावनाओं को रीड करके उनके अनुरूप हमें अपने इशारे पर नचाते हैं. जो डरते हैं उन्हें भूत, पिशाच, चुड़ैल, पिशाचिनी, का रूप धर कर डराते हैं. जो अंधानुकरण करते हैं उन पर पीर बाबा, बाला जी, देवी जी, भैरव जी सहित तमाम नामों से चौकी के रूप में सवार हो जाते हैं. ये सामूहिक तौर पर रूप बदलने में माहिर होते हैं. किसी का भी रुप बना लेते हैं.
ये अपने शिकार से बेतुकी गतिविधियां कराते हैं. ताकि उनके भीतर नकारात्मक उर्जाएं पैदा हों और ये उसका भोजन कर सकें. इनके शिकार लोगों में तमाम को आती जाती परछाई या खुली आखों से मरे हुए लोग दिखते हैं, कुछ को कान में आवाजें सुनाई देती हैं, कुछ लोग बार बार हाथ धोते रहते हैं, कुछ अपने बाल तोड़ तोड़कर मुंह में डालते रहते हैं. एेसी ही तमाम और बेतुकी गतिविधियां करते हैं ये.
शराब, ड्रग्स, चरस,अफीम, पान मसाला, सिगरेट, बीड़ी सहित सभी तरह के नशे के शिकार लोगों के भीतर इन्हीं का कब्जा रहता है. ये भीतर से नशे की डिमांड करते हैं, इसी कारण लोग चाहकर भी नशा छोड़ं नहीं पाते.
जुवें, लाटरी, सट्टा व अन्य तरह के एेब के शिकार लोगों में भी ये प्रायः मिलते हैं. इसी कारण वे एेब छोड़ नहीं पाते. ये अपने शिकार को एकाकी बनाते हैं. कुछ को तो नहाने भी नहीं देते.
डिप्रेशन में गए हर व्यक्ति के भीतर नकारात्मक तत्व होते हैं. जो लोग नकारात्मक तत्वों के शिकार होते हैं उनके परिवार के अन्य लोग भी धीरे धीरे इनके शिकार बनते जाते हैं. क्योंकि ये एक से दूसरे में ट्रेवलिंग करके उन्हें शिकार बनाने की कोशिश करते रहते हैं.
मनोचिकित्सक एेसी दशा को ओ.सी.डी. यानी दिमागी खलल का नाम देते हैं. जबकि तांत्रिक इन्हें भूत प्रेत की बाधा बताते हैं. मगर सालों उपचारित करने के बाद ये लोग इन्हें ठीक नहीं कर पाते. क्योंकि न तो यह दिमागी खलल हैं, और न ही भूत प्रेत की बाधा. वास्तव में ये उर्जा की बीमारी है.
इनसे निपटने के लिए आत्मबल सबसे बड़ा हथियार होता है.
मगर नकारात्मक तत्व अपने शिकार का आत्मबल तोड़कर रखते हैं.
इलेक्ट्रिक वायलेट उर्जा उन्हे जला देती है. संजीवनी उपचारक या काबिल हीलर इलेक्ट्रिक वायलेट उर्जा का उपयोग करके उन्हें खत्म कर देते हैं. इनकी डेड बाड़ी चक्रों से निकाल कर चक्रों की सुरक्षा जाली के छेद भर दिये जायें. तो इसके शिकार ठीक हो जाते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम 180 दिन का समय लगता है.
तो क्या लाल चंद भी यही है. गिरिजा शरण जी ने कमंडल में बंद प्रेत की तरफ इशारा करते हुए सवाल किया था.
नहीं, ये अलग है. मैने बताया. ये भटका हुआ आभामंडल है. जिसे अनजाने में लोग आत्मा के नाम से पुकारते हैं. ये परेशानी बाधाओं के शिकार 1 लाख में से किसी एक के पास होती है.
क्या होता है भटका हुआ आभामंडल, ये मै आगे आपको बताउंगा. साथ ही बताउंगा कि काला जादू कैसे असर करता है लोगों पर.
क्रमशः
सयत्म् शिवम् सुंदरम्
शिव गुरु को प्रमाण
गुरवर को नमन.