राम राम मै शिवांशु
क्या अदृष्य होने के दौरान आप हवा में उड़ भी सकते हैं? मैने गिरिजा शरण जी से पूछा.
नहीं, उस दौरान भारहीनता का अनुभव तो होता है मगर मै उड़ नहीं सकता, उन्होंने बताया. उस समय कुछ खा पी नहीं सकता. भूख प्यास का अहसास भी नहीं होता. खुद में ब्रह्मांड की जिम्मेदार शक्ति होने का अहसास बढ़ने लगता है. दया और सहानुभूति के भाव बढ़ जाते हैं. शांति और आजादी का सुखद अनुभव होता है. विचार शून्यता की दशा आसानी से प्राप्त हो जाती हैै. जिसके कारण ध्यान स्वमेव समाधि की दशा में जाने लगता है.
उस समय हम दोनो गंगा जी के किनारे टहल रहे थे. मैने पूछा आप तीन जन्मों से इस साधना में लगे हैं, इसका पताकब चला.
हमेशा से था. उन्होंने बताया मुझे तीनों जन्मों अच्छी तरह याद हैं. इससे दो जन्म पहले मै एक राजा का गुप्तचर था. तब मेरी मुलाकात गुरु भगवान से हुई.
आपका मतलब स्वामी जी से है? मैने पूछा.
हां, उनसे मै तीन जन्म पूर्व मिला था. मुझे अच्छी तरह याद है कि मै कुछ एेसे शत्रुओं की तलाश के अभियान पर था जो मेरे राजा की जान लेना चाहते थे. मै कामयाब नहीं हो पा रहा था. मेरे एक मित्र मुझे गुरु भगवान के पास ले गए. उन दिनों गुरु भगवान विश्वास लेकर आने वाले लोगों की कठिनाईयों को हल करते थे. मेरे विश्वास को भी स्वीकारा और शत्रुओं का भेद जानने में सहायता की.
तब मैने उनसे जाना था कि अदृष्य होने की सिद्धी भी होती है. मै सर्वोत्तम गुप्तचर बनूं इस छोटी कामना के साथ मैने गुरु भगवान से अदृष्य साधना सिद्धी करने का अनुरोध किया. काफी टाल मटोल के बाद वे साधना कराने के लिये तैयार हुए. मैने अपना कार्य करते हुए कई माह इस साधना को करता रहा. गुरु भगवान के मुताबिक अच्छी प्रगति पर था. मगर उन्हीं दिनों शत्रुओं के एक हमले में मै मारा गया.
साधना की सिद्धी पाने की इच्छा इतनी अधिक प्रबल थी कि अगने जन्म में मुझे सब कुछ याद रहा. तब मैने गुरु भगवान को बहुत ढ़ूंढा. मगर वे न मिल सके. एक नागा सन्यासी के मार्गदर्शन में अदृष्य साधना पुनः शुरू की. लगभग 42 साल करता रहा. मगर सफलता नहीं मिली. साधना के दौरान ही संक्रमण से मेरी मृत्यु हो गई.
अदृष्य सिद्धी की प्रबल कामना फिर भी मेरे भीतर जिंदा रही. जिसके कारण इस जन्म में तीन साल की उम्र से ही मैने गुरु भगवान के बारे में बातें करनी शुरू कर दी थीं. पता नहीं क्यों नागा गुरु के प्रति लगाव की बजाय गुरु भगवान के प्रति लगाव बना रहा. जबकि यादें नागा गुरुदेव की भी शेष थीं.
जब मै 9 साल का था तभी माता पिता को छोड़कर घर से चला गया. सालों बहुत भटका. फिर एक दिन गंगा सगर में गुरु भगवान दिख गए. मैने उन्हें पहचान लिया, उन्होंने भी मुझे पहचान लिया. तब मै 20 साल का था. गुरु भगवान ने फिर से ये साधना शुरू कराई. मगर 18 साल लगातार साधना करने के बाद भी सफलता नहीं मिली. 3 साल पहले गुरु भगवान ने मुझे उर्जा नायक महराज के पास भेजा. मै उनसे लखनऊ में गोमती किनारे एक मंदिर में मिला. उर्जा नायक महराज ने मेरी उर्जाओं का परीक्षण किया और बताया कि पूर्व जन्मों में बदले की भवना के कारण मेरी उर्जा नाड़ियों में अवरोध उत्पन्न हो गया है. जिसके कारण ये साधना सिद्ध नहीं हो पा रही.
मुझे बहुत अच्छी तरह याद है कि गुप्तचरी के दौरान मै शत्रुओं के प्रति बदले की भावना से भरा रहता था. उर्जा नायक महराज ने मुझे बिल्ली की झेर और त्रिधातु के संयोग से बना एक यंत्र दिया. जिसे साधना के दौरान मुंह के अंदर रखकर मंत्र जाप करना था. उर्जा नायक महराज ने कहा था कि 3 साल में ये यंत्र मेरी उर्जा के साथ जुड़ जाएगा. तब साधना में सफलता मिलेगी. 3 साल पूरे होने पर उन्होंने आपको गुरु भगवान के आश्रम भेजा. आपकी सहायता से मैने सफलता पा ली.
नहीं मित्र इसका श्रेय आप मुझे नहीं दे सकते. जो मैने किया वह गुरुवर का ही सिखाया हुआ है. अब आपकी आगे की योजना क्या है?
गुरु भगवान ने मुझे वायु गमन अर्थात् आसमान में चलने की साधना सिद्ध करने का आदेश दिया है. गिरिजाशरण जी ने बताया. उसके लिए मै आपके पास से सीधे नेपाल जाउंगा. वहां पशुपति नाथ में कुछ दिन का प्रवास होगा. वहीं कुछ अध्यात्मिक मित्रों से मुलाकात होगी. जो गुरु भगवान और उर्जा नायक महराज के पूर्व परिचित हैं. उनके सहयोग से हिमालय की गुफाओं में वायुगमन साधना शुरू करुंगा.
मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं. मैने कहा.
हम लोग नदी किनारे चलते हुए काफी दूर तक निकल गए थे. गंगा जी की धारा की तरफ देखते हुए मैने गिरिजा शरण जी से कहा पानी की धारा को देखकर आपको किसी की याद नहीं आ रही है क्या.
वे खिलखिला कर हंस पड़े. बोले हां आ तो रही है. धारा को देखकर नंदी शरण जी की याद गई.
मै भी हंस पड़ा.
नंदी शरण दास स्वामी केे सिद्ध शिष्यों में से एक हैं. वे पानी की सतह पर चलने की सिद्धी पाये हैं. आश्रम में रहने के दौरान गंगा जी के दूसरे किनारे तक वे दिन में दो तीन बार पानी पर चलकर कई तरह के काम निपटा लाते हैं.
आगे मै आपको नंदी शरण दास की सिद्धी के बारे में बताउंगा.
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
शुव गुरु को प्रणाम.
गुरुवर को नमन.